सुबह की सैर का ख्याल आते ही हमारे मन में एक अजीब किस्म की ताजगी का अहसास कूलाचे भरने लगता है तथा हमारा तन मन एक अजीब तरह की स्फूर्ति से विभोर हो उठता है । सुबह में घूमना सबको रुचिकर लगता है, किन्तु इसका मकसद भिन्न-भिन्न हो सकता है, कोई महाशय इसे जुबानी दलीलों के द्वारा रुचिकर बनाते हैं जैसै कि उनके बिस्तर छोड़ने का समय तब होता है जब सूरज अपनी आधी ऊँचाई को तय कर चुका होता है. अतः इन्होंने कभी सुबह को देखा ही नहीं, सुबह की सैर तो दूर की बात है. परन्तु यही महाशय जब कभी स्वास्थ्य सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं या किसी योग शिविर में शिरकत फरमाते हैं तो सुबह की सैर के दर्जनों फायदे बयान करते हुए नजर आते हैं.।
किसी शख्स के घूमने का मकसद दूसरों की परेशान जिंदगी में झाँकना तथा उनकी परेशानी को कम करने के बजाय उसमें और हल्दी नमक लगाकर अपनी खुशी को बढ़ाना एवं सुबह की सैर का आनंद उठाना ।
किसी के घूमने का मकसद सुबह की अनजान रंगीन खूबसूरती को निहारना तथा उन मॉडलों की नकल उतारना. इन सभी के अलावा बहुत ऐसे भी लोग हैं जिनके घूमने का मकसद स्वास्थ्य बनाना तथा सुबह की खूबसूरती को निहारना दोनों है ।
ये तो हुए सुबह की सैर के कुछ महत्वपूर्ण फायदे.
मगर आपने कभी सोचा है उन मर्यादित ग्रामीणों के बारे में, जो इस फलदायी सुबह की सैर के बारे में क्या सोचते हैं. आइये बताते विस्तार से-
एक गांव था, जो कि आधुनिकता के रंग में नहीं रंगा था. वह अभी भी अपनी प्राचीन परंपरा को बनाए हुए गुजर बसर कर रहा था. उसी गांव की एक लड़की बीमार हो गई. उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया. डॉक्टर ने अपनी निगरानी में उसका इलाज किया. लड़की ठीक हो गई, मगर कमजोरी अभी बाकी थी. अत: डॉक्टर ने उसे पौष्टिक भोजन और दवाई के साथ साथ सुबह की सैर की हिदायत थी.
पौष्टिक आहार और दवाई तक तो ठीक थी, परंतु गांव में सुबह की सैर, मां-बाप के सामने एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी हो गई. फिर भी लड़की की आरोग्यता के लिए, मां-बाप को उसके हक में फैसला लेना पड़ा.
जब सुबह हुई और लड़की को सैर पर निकलना था. तब उसकी जो मनोदशा हो रही थी, जैसे कि उसे लगता था कि वह किसी रणक्षेत्र में जा रही हो. फिर भी उसने अपनी मनोदशा पर काबू कर बाहर निकली.
जैसे ही बाहर निकली, सामने एक आदमी जो गाय को चारा डालने जा रहा था, लड़की को देखकर अचंभित होकर पूछा, बेटी कुछ खो गया है? लड़की बिना जवाब दिए आगे बढ़ने लगी. कुछ दूर आगे बढ़ी तो एक युवक ने उसे बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखकर बोला, पिताजी कहीं भाग गए हैं. लड़की नहीं के लहजे में जवाब देते हुए आगे बढ़ती रही. कुछ ही दूर आगे बढ़ी कि एक प्रौढ़ व्यक्ति ने उसे टोका और कहा, बेटी दुख सभी की जिंदगी में आता है, इसका अंत तो प्राणांत तो नहीं होता, इसलिए मरने का फैसला छोड़ दो तथा घर वापस चलो.
लड़की को हार मानकर घर आना पड़ा तथा सुबह की सैर का ख्याल भी मन से दूर हो गया.
उसी दिन दोपहर को कुछ महिलाएं उसकी मां के पास आई और बोली. बहनजी, आज वो(पति) आए और बोले कि उनकी बेटी सुबह में घूम रही थी, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैंने बोला, पागल हो गए हो जी, वो भाई साहब और बहन जी पागल हैं कि अपनी जवान बेटी को सुबह में घूमने देंगें. इस बात को सुनकर लड़की की मां बेबसी भरी निगाहों से उस महिला को निहारती रह गई.
इन बातों को देखकर मेरा मन दुखी हो उठा कि सुबह की सैर, जो कि इतना फायदेमंद है, इससे हमेशा के लिए ये ग्रामवासी वंचित हो गए. इनके मन में अभी भी इतनी कुंठित विचारधारा पल रही है. मगर आज मुझे अपने मन के एक कोने में थोड़ी खुशी का भी अहसास हो रहा है, जब मैं इस शहर की सुबह की सैर का मतलब समझ गई हूं. तब मुझे ऐसा अहसास होने लगा है कि गांव वालों की सुबह ही ज्यादा पवित्र और उज्ज्वल होती है, जो हरेक सुबह के प्रकाश में अपनी गरिमा को दिनोंदिन निखारते रहते हैं ना कि शहर की सुबह की सैर, जो कि प्रत्येक सुबह कुछ न कुछ बुराइयों को अपने में अंगीभूत करते हैं तथा सुबह की सैर का मतलब ही बदल देते हैं.
1 comments:
बहुत ही रोचक कहानी. सचमुच सुबह तो एक ही होती है पर हर किसी के लिए यह अलग-अलग संदेश लेकर आती है.
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