कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही
To paraphrase the well-known saying, the last refuge of the profiteer is patriotism. But what if patriotism is, in a given situation, the most profitable of options? What if patriotism paid? Wouldn’t it be a foolish – and eventually pauperised – profiteer who in such a scenario did not make patriotism his first resort rather than his last?
According to the Swiss Banking Association Report 2006, dishonest (and unpatriotic) Indians have stashed away some $1,456 billion in numbered Swiss bank accounts. If the report is to be believed, Indians have more clandestine loot hidden away in foreign accounts than all the rest of the world combined. This suggests that, far from being a poor country as we’ve always been taught by our netas to believe, India is in fact a very rich country. Except that its wealth, instead of being kept in India, has been taken outside India.
Compared with India’s $1,456 billion, Russia comes a poor second with $470 billion, followed by the UK ($390 billion), Ukraine ($100 billion) and China ($96 billion). These figures, which are four years out of date, relate only to Swiss banks, and do not take into account other offshore tax havens such as the Bahamas and the Cayman Islands which offer similar facilities for the parking of undeclared wealth.
It has been estimated that if the Indian money kept abroad only in Swiss accounts were to be brought back to India, the country’s entire foreign debt would be wiped out 13 times over. The foreign debt repaid, the interest earned on the residual amount would reportedly be more than the central budget. You wouldn’t have to pay taxes. Every poor person in the country could be given a lakh of rupees.
But why would this huge hoard of undeclared boodle be brought back to India? For reasons of pure patriotism? Certainly not. But what about reasons of profitable patriotism? Now that makes more sense.
The reason that all this wealth was secreted out of the country – by politicians, industrialists, businessmen, racketeers, smugglers – was that the regulation-strangulated Indian economy did not inspire confidence in anyone, least of all in much of the political leadership whose (deliberately?) misguided policies had made the country economically weak to begin with.
It was deemed to be prudent to keep cash assets in the form of hard currency rather than in the lowly avatar of the despised and worthless Indian rupee. Economic patriotism very definitely did not pay.
But does the same situation obtain today, when the so-called ‘advanced’ economies by and large are in terrible shape, thanks to their own greed and spendthrift ways which have resulted in enormous and unsustainable accumulations of sovereign debt? Following the subprime crisis in the US, which unleashed a global financial tsunami from which the international economic order will take a long while to recover, Europe has been hit with an epidemic of ‘Euroflu’ as a result of fiscal mismanagement in the euro zone which has led Greece into virtual bankruptcy and is also threatening Spain and Portugal.
Increasingly, the so-called ‘advanced’ economies of the world – including Japan, which also seems to be on the brink of a sovereign debt trap – don’t look so advanced anymore. The two big growth centres of the world today – as we keep being told over and over again – are India and China. In this context, wouldn’t it make both patriotic and – more importantly – profitable sense for India’s offshore riches to find their way back to India, instead of remaining in what looks to be an increasingly dangerous economic war zone?
What about it, all you Numbered Accountwallas? Wear your patriotism on your sleeve. Or, better still, in your Indian bank accounts.
सुबह की सैर
सुबह की सैर का ख्याल आते ही हमारे मन में एक अजीब किस्म की ताजगी का अहसास कूलाचे भरने लगता है तथा हमारा तन मन एक अजीब तरह की स्फूर्ति से विभोर हो उठता है । सुबह में घूमना सबको रुचिकर लगता है, किन्तु इसका मकसद भिन्न-भिन्न हो सकता है, कोई महाशय इसे जुबानी दलीलों के द्वारा रुचिकर बनाते हैं जैसै कि उनके बिस्तर छोड़ने का समय तब होता है जब सूरज अपनी आधी ऊँचाई को तय कर चुका होता है. अतः इन्होंने कभी सुबह को देखा ही नहीं, सुबह की सैर तो दूर की बात है. परन्तु यही महाशय जब कभी स्वास्थ्य सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं या किसी योग शिविर में शिरकत फरमाते हैं तो सुबह की सैर के दर्जनों फायदे बयान करते हुए नजर आते हैं.।
किसी शख्स के घूमने का मकसद दूसरों की परेशान जिंदगी में झाँकना तथा उनकी परेशानी को कम करने के बजाय उसमें और हल्दी नमक लगाकर अपनी खुशी को बढ़ाना एवं सुबह की सैर का आनंद उठाना ।
किसी के घूमने का मकसद सुबह की अनजान रंगीन खूबसूरती को निहारना तथा उन मॉडलों की नकल उतारना. इन सभी के अलावा बहुत ऐसे भी लोग हैं जिनके घूमने का मकसद स्वास्थ्य बनाना तथा सुबह की खूबसूरती को निहारना दोनों है ।
ये तो हुए सुबह की सैर के कुछ महत्वपूर्ण फायदे.
मगर आपने कभी सोचा है उन मर्यादित ग्रामीणों के बारे में, जो इस फलदायी सुबह की सैर के बारे में क्या सोचते हैं. आइये बताते विस्तार से-
एक गांव था, जो कि आधुनिकता के रंग में नहीं रंगा था. वह अभी भी अपनी प्राचीन परंपरा को बनाए हुए गुजर बसर कर रहा था. उसी गांव की एक लड़की बीमार हो गई. उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया. डॉक्टर ने अपनी निगरानी में उसका इलाज किया. लड़की ठीक हो गई, मगर कमजोरी अभी बाकी थी. अत: डॉक्टर ने उसे पौष्टिक भोजन और दवाई के साथ साथ सुबह की सैर की हिदायत थी.
पौष्टिक आहार और दवाई तक तो ठीक थी, परंतु गांव में सुबह की सैर, मां-बाप के सामने एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी हो गई. फिर भी लड़की की आरोग्यता के लिए, मां-बाप को उसके हक में फैसला लेना पड़ा.
जब सुबह हुई और लड़की को सैर पर निकलना था. तब उसकी जो मनोदशा हो रही थी, जैसे कि उसे लगता था कि वह किसी रणक्षेत्र में जा रही हो. फिर भी उसने अपनी मनोदशा पर काबू कर बाहर निकली.
जैसे ही बाहर निकली, सामने एक आदमी जो गाय को चारा डालने जा रहा था, लड़की को देखकर अचंभित होकर पूछा, बेटी कुछ खो गया है? लड़की बिना जवाब दिए आगे बढ़ने लगी. कुछ दूर आगे बढ़ी तो एक युवक ने उसे बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखकर बोला, पिताजी कहीं भाग गए हैं. लड़की नहीं के लहजे में जवाब देते हुए आगे बढ़ती रही. कुछ ही दूर आगे बढ़ी कि एक प्रौढ़ व्यक्ति ने उसे टोका और कहा, बेटी दुख सभी की जिंदगी में आता है, इसका अंत तो प्राणांत तो नहीं होता, इसलिए मरने का फैसला छोड़ दो तथा घर वापस चलो.
लड़की को हार मानकर घर आना पड़ा तथा सुबह की सैर का ख्याल भी मन से दूर हो गया.
उसी दिन दोपहर को कुछ महिलाएं उसकी मां के पास आई और बोली. बहनजी, आज वो(पति) आए और बोले कि उनकी बेटी सुबह में घूम रही थी, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैंने बोला, पागल हो गए हो जी, वो भाई साहब और बहन जी पागल हैं कि अपनी जवान बेटी को सुबह में घूमने देंगें. इस बात को सुनकर लड़की की मां बेबसी भरी निगाहों से उस महिला को निहारती रह गई.
इन बातों को देखकर मेरा मन दुखी हो उठा कि सुबह की सैर, जो कि इतना फायदेमंद है, इससे हमेशा के लिए ये ग्रामवासी वंचित हो गए. इनके मन में अभी भी इतनी कुंठित विचारधारा पल रही है. मगर आज मुझे अपने मन के एक कोने में थोड़ी खुशी का भी अहसास हो रहा है, जब मैं इस शहर की सुबह की सैर का मतलब समझ गई हूं. तब मुझे ऐसा अहसास होने लगा है कि गांव वालों की सुबह ही ज्यादा पवित्र और उज्ज्वल होती है, जो हरेक सुबह के प्रकाश में अपनी गरिमा को दिनोंदिन निखारते रहते हैं ना कि शहर की सुबह की सैर, जो कि प्रत्येक सुबह कुछ न कुछ बुराइयों को अपने में अंगीभूत करते हैं तथा सुबह की सैर का मतलब ही बदल देते हैं.
मलाई चटनी
जीवन की तीन मूलभूत आवश्कताओं में भोजन का प्रथम स्थान है. अत: हमें भोजन को पहली आवश्यकता के रूप में ही लेना चाहिए तथा इसे अधिक से अधिक पौष्टिक और लजीज बनाकर ग्रहण करना चाहिए.
भोजन को ज्यादा से ज्यादा लजीज, स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाने में चटनी का अहम स्थान है. चटनी का भोजन में वही स्थान है जो जिंदगी में मनोरंजन का.
अत: मैं आज आपके सामने एक ऐसी चटनी प्रस्तुत करने जा रही हूं जो स्वादिष्ट और पौष्टिक दोनों है.
प्रस्तुत है-
मलाई की चटनी
आवश्यक सामाग्री--
- आधी कटोरी मलाई(करीब 200ग्राम)
- एक छोटा प्याज
- एक हरी मिर्च
- एक छोटा टमाटर
- आधा चम्मच धनिया पाउडर(चाय चम्मच)
- आधा चाय चम्मच मिर्च पाउडर
- आधा चाय चम्मच गरम मसाला
- थोड़ा धनिया पत्ता
- नमक स्वादानुसार
- दस दाना काजू
- थोड़ा किसमिस(बीस दाना)
- थोड़ा जीरा
- एक बड़ा चम्मच तेल
निर्माण विधि-
कड़ाही में थोड़ा तेल डालकर गर्म करें. इस तेल में जीरा डालें. भूने हुए जीरे में कटी हुई हरी मिर्च और प्याज डालें. प्याज जब भुनकर लाल हो जाए तो उसमें टमाटर का टुकड़ा डाल दें. जब टमाटर अच्छी तरह पक जाए तब उसमें थोड़ा धनिया पाउडर और थोड़ा मिर्च पाउडर डाल दें. एक दो मिनट चलाएं. फिर इसमें मलाई डाल दें. धीमी आंच पर पांच-सात में चलाते रहें. जब मलाई से घी निकलने लगे तो इसमें गरम मसाला और स्वानुसार नमक डाल दें. इसके बाद काजू और किसमिस भी डाल दें. और इसे मिलाकर आंच पर से उतार दें. इसमें कटी हुई धनिया पत्ती डालकर गरमागरम परोसें तथा खाने के स्वाद को दुगुना बनाएं.
धन्य धन्य है धन्य जीवन
स्वरों में स्वर समवेतम् है जो
अक्षरों में अक्षर ओंकार है जो
वायु में वायु प्राणवायु है जो
मृदुल समवेत ओंकार जीवन
ममता का अनुपम संसार जीवन
बुद्धि शुद्धि समृद्धि पथ पर
पल पर अग्रसर है ये जीवन
जीवन के क्षण-क्षण प्रतिक्षण
जीवन का आधार है जो
प्राणमय उस प्राणाधार को
सहस्त्र करों से उपहार जीवन।